Saturday 28 May 2016

राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) National Horticulture Mission - NHM

राष्ट्रीय बागवानी मिशन कार्यक्रम केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है, जिसे मई 2005 में प्रारंभ किया गया था। इस कार्यक्रम के अंतर्गतबागवानी उत्पादों के उत्पादन, फसल परवर्ती प्रबंधन और विपणन मामलों को शामिल किया जाता है। इस मिशन के तहत् निम्नलिखित मुद्दों पर बल दिया गया है-
  • कलम बैंक स्थापित करने सहित पर्याप्त गुणवत्ता वाले पौधों का उत्पादन और आपूर्ति की क्षमता बढ़ाना।
  • अच्छी खेती के लिए फसल की पैदावार बढ़ाना।
  • बागवानी फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना।
  • मूलभूत ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए मिट्टी और पत्ते के निरीक्षण के लिए प्रयोगशालाएं, कीटनाशकों का सर्वेक्षण, ग्रीन हाउस, पाली हाउस, सिंचाई, पौधशालाएं आदि जैसी सुविधाओं को बढ़ाना।
  • फसल के बाद मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाना।
  • निर्यात के लिए उच्च किस्म की बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाना।
  • विपणन और निर्यात के लिए मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाना।
  • उच्च किस्म के प्रसंस्करण उत्पादों का उत्पादन बढ़ाना।
  • योग्यता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के जरिए सुदृढ़ आधार तैयार करना।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत प्रतियोगी बागवानी फसलों पर अधिक जोर देने के साथ प्रौद्योगिकी के प्रति भी दृष्टिकोण बदलने पर बल दिया गया है।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) Rashtriya Krishi Vikas Yojana - RKVY

राष्ट्रीय विकास परिषद के प्रयासों के परिणामस्वरूप 16 अगस्त, 2007 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी। इस योजना हेतु सरकार द्वारा पांच वर्ष के लिएर 25,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का उद्देश्य कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों का सम्पूर्ण विकास सुनिश्चित करके, ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कृषि में 4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना राज्य की आयोजना होगी और कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों पर उपगत आधारित व्यय की प्रतिशतता के अतिरिक्त, इस योजना के तहत सहायता के लिए पात्रता कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए बजटों में रखी गयी राशि पर निर्भर होगी। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहतूकेंद्र सरकार द्वारा राज्यों को 100 प्रतिशत अनुदान के रूप में कोष प्रदान किया जायेगा। योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
  1. राज्यों को प्रोत्साहित करना ताकि कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की जा सके।
  2. कृषि और संबद्ध क्षेत्र की योजनाओं के आयोजन और कार्यान्वयन की प्रक्रिया में राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना।
  3. जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाओं की तैयारी की उपलब्धता पर सुनिश्चित करना।
  4. यह सुनिश्चित करना कि स्थानीय जरूरतों/फसलों/प्राथमिकताओं को राज्यों की कृषि योजनाओं में बेहतर ढंग से प्रतिबिम्वित किया जाए।
  5. मध्यस्थताओं को संकेन्द्रित करके महत्वपूर्ण फसलों में पैदावार के अंतर को कम करने का लक्ष्य प्राप्त करना।
  6. कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों में किसानों को अधिकतम रिटर्न दिलाना।

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) National Social Assistance Programme - NSAP

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम जो 15 अगस्त, 1995 से अस्तित्व में आया, संविधान के अनुच्छेद 41 एवं 42 में वर्णित नीति-निदेशक सिद्धांतों को पूरा करने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके अंतर्गत  निर्धन परिवारों को, वृद्धावस्था, प्रमुख जीविको पार्जक की मृत्यु और मातृत्व के मामले में सामाजिक सहायता के लिए एक राष्ट्रीय नीति शुरू की गई है। इस कार्यक्रम के तीन घटक हैं-
  • राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना
  • राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना
  • राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना विभिन्न संबंधित निकायों से प्राप्त सुझावों और राज्य सरकारों की प्रतिक्रिया के आधार पर 1998 में इन योजनाओं में आशिक संशोधन किया गया।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम शत-प्रतिशत केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऐसे लाभ के अतिरिक्त सामाजिक सहायता का न्यूनतम मानक सुनिश्चित करना है, जो राज्य पहले से दे रहे हैं अथवा भविष्य में प्रदान करेंगे। यह कार्यक्रम गरीबी उन्मूलन और बुनियादी आवश्यकताओं की व्यवस्था हेतु संचालित योजनाओं के साथ सामाजिक सहायता उपायों को जोड़ने के अवसर प्रदान करता है। विशेष रूप से वृद्धावस्यथा पेंशन को वृद्ध गरीबों के लिए चिकित्सा देखभाल और अन्य लाभों के साथ जोड़ा जा सकता है। ऐसेगरीब परिवारों, जिनका आजीविका कमाने वाला र्नही रहा हो, को परिवार लाभ योजना के अतिरिक्त स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत भी सहायता दी जा सकती है। मातृत्व सहायता को जच्चा-बच्चा देखभाल कार्यक्रम से जोड़ा गया है।

सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) Sarva Shiksha Abhiyan - SSA

2001-02 में शुरू किया गया सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) वर्तमान में चल रहा एक व्यापक कार्यक्रम है और प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराने का मुख्य साधन है। सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
  1. 2005 तक सभी बच्चों का स्कूलों, शिक्षा गारंटी केंद्रों, वैकल्पिक स्कूल, ब्लॉक टू स्कूल कैंपों में दाखिला करना,
  2. प्राथमिक अवस्था में वर्ष 2007 तक और प्रारम्भिक शिक्षा के स्तर पर 2010 तक सभी लिंग और सामाजिक श्रेणी के अन्तर को समाप्त करना,
  3. वर्ष 2010 तक सार्वभौमिकं प्रतिघारण, औरः
  4. जीवन के लिए शिक्षा पर जोर देते हुए संतोषजनक गुणवत्ता की प्रारंभिक शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना।
शिक्षा के अधिकार के अधिनियम के प्रावधानों को सर्वशिक्षा अभियान के जरिए कार्यान्वित किया जाता है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की आवश्यकताओं के अनुरूप अभियान के तौर-तरीकों में आवश्यक संशोधन किए गए हैं।
राज्यों के भागीदारी में कार्यान्वित सर्वशिक्षा अभियान 6-14 वर्ष के आयु वर्ग में 209 मिलियन बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करता है। यह 9.72 लाख विद्यमान प्राइमरी और अपर प्राइमरी विद्यालयों तथा 36.95 लाख अपर अध्यापकों को कवर करता है।
यह कार्यक्रम पूरे देश में लागू किया जाएगा तथा इसमें बालिकाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों तथा दुष्कर परिस्थितियों में रह रहे छात्रों में अभी तक स्कूल नहीं हैं, वहां नए स्कूल खोलना तथा अतिरिक्त कक्षाओं हेतु नए कमरे, शौचालय, रखरखाव एवं स्कूल सुधार अनुदान के माध्यम से नए स्कूल खोलना और पुष्ट करना शामिल है।
योजनांतर्गत 6 से 11 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को वर्ष 2007 तक पांच वर्ष की तथा 11 से 14 वर्ष तक के बच्चों को 8 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से पूरा प्रयास किया जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि सभी की शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए यूनेस्को ने सन् 2015 तक की समय सीमा निर्धारित की है। सर्वशिक्षा अभियान के बेहतर एवं समग्र क्रियान्वयन हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सर्वशिक्षा अभियान मिशन भी स्थापित किया गया है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत बालिका छात्रों तथा कमजोरवगाँके बच्चों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इन छात्रों को ध्यान में रखकर विभिन्न कदम उठाए गए हैं, जैसे- मुफ्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराना,इत्यादि। डिजिटल डिवाइड को खत्म करने के लिए सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कम्प्यूटर शिक्षा भी प्रदान की जाएगी।

समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) Integrated Child Development Services - ICDS

समन्वित बाल विकास सेवा 1975 में केंद्र-प्रायोजित योजना के तौर पर शुरू की गई। इसके उद्देश्य हैं-
  1. 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के पौष्टिक आहार तथा स्वास्थ्य स्तर में सुधार,
  2. बच्चों के समुचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव डालना,
  3. बाल मृत्यु दर, कुपोषण और स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने वाले बच्चों की दर में कमी लाना,
  4. बाल विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न विभागों के बीच नीति तथा कार्यान्वित में कारगर तालमेल;
  5. स्वास्थ्य तथा पोषाहार शिक्षा की समुचित व्यवस्था कर के माताओं की, बच्चों के स्वास्थ्य व पोषाहार संबंधी आवश्यकताओं की देखरेख की क्षमता बढ़ाना।
इस योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रत्येक ग्रामीण और आदिवासी सामुदायिक विकास, ब्लॉक में एक परियोजना स्थापित की जाए। उसकी आबादी और गांवों की संख्या भले कुछ भी हो। शहरों में एक लाख की आबादी पर एक परियोजना चलायी जाएगी। 400-800 की आबादी पर एक आगनवाड़ी, 800-1600 की आबादी पर दो आंगनबाड़ी,1600-2400 की आबादी पर तीन और उनके उपरांतप्रत्येक 800 के गुणांकों की आबादी पर एक आंगनवाड़ी खोली जाएगी। ग्रामीण और शहर की 150-400 की आबादी के लिए एक लघु आंगनवाड़ी परियोजना शुरू की जाएगी। आदिवासी, नदी क्षेत्र, रेगिस्तानी, पहाड़ी, और अन्यदुर्गम क्षेत्रों में 300-800 की आबादी पर एक आंगनवाड़ी और 150-300 की आबादी पर लघु आंगनवाड़ी खोली जाएगी।

इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) Indira Awaas Yojana - IAY

गांवों में आवास की कमी को दूर करने के उद्देश्य से जवाहर रोजगार योजना (जेआरवाई) की उप-योजना के रूप में मई, 1985 में इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) शुरू की गई। 1 जनवरी, 1996 से यह एक स्वतंत्र योजना के रूप में लागू है और यह ग्रामीण आवास हेतु ध्वजपोत कार्यक्रम है। इस योजना का लक्ष्य अत्यंत गरीब अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुक्त बंधुआ मजदूरों और गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में आनेवाले ग्रामीण गरीबोंको आवासीय इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों को सुधारने में मदद देना है, जिसके लिए उन्हें सहायता अनुदान दिया जाता है। वर्ष 1995-96 से इंदिरा आवास योजना का लाभ युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं या उनके निकट संबंधियों को भी दिया जाने लगा है।
इस योजना के अंतर्गत मकान का आवंटन परिवार की महिला सदस्य के नाम या संयुक्त रूप से पति-पत्नी के नाम किया जाता है। कम से कम 60 प्रतिशत धनराशि का उपयोग अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों के लोगों के लिए करना होता है। स्वच्छ शौचालय और धुआं-रहित चूल्हे भी लाभार्थियों को उपलब्ध कराए जाते हैं।
इंदिरा आवास योजना के मुख्य तथ्य-
  • इस योजना के अधीन दी जाने वाली राशि 1 अप्रैल, 2008 से मैदानी क्षेत्रों में प्रति गृह निर्माण सहायता को ₹ 25,000 से बढ़ाकर ₹ 35,000 और पहाड़ी/पर्वतीय क्षेत्रों में ₹ 97,500 से बढ़ाकर ₹ 38,500 कर दिया गया है।
  • कच्चे मकान को पक्का बनाने के लिए प्रति मकान ₹ 12,500 से बढ़ाकर ₹ 15,000 कर दिया गया है।
  • इस योजनान्तर्गत पुरुष सदस्य के नाम मकान तभी आवंटित होगा जब परिवार में महिला सदस्य न हो।
  • शौचालय, धुआंरहित चूल्हा,सही नाली इत्यादि व्यवस्था इंदिरा आवास योजनान्तर्गत निर्माणाधीन आवासों में होनी चाहिए।
  • इस योजना के तहत् किसी प्रकार का खास डिजाइन, तकनीक एवं सामग्री नहीं होती।
  • योजना के तहतू, वित्तीय संसाधन केंद्र और राज्य में 75:25 के अनुपात का आधार है।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान 21.27 लाख मकानों का निर्माण/मरम्मत का लक्ष्य था जबकि सरकार ने 19.88 लाख मकानों के निर्माण/मरम्मत के लिए ₹ 5458.01 करोड़ व्यय किए।
  • वर्ष 2008-09 के लिए केंद्र ने ₹ 5,645.77 करोड़ जारी किए, इससे 21.27 लाख मकान इंदिरा आवास योजना के तहत बनाने का लक्ष्य आबंटन और इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत् कितने घर बनेंगे, तय करती है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) Mahatma Gandhi National Rural Employment Gurantee Act - MGNREGA

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) का क्रियान्वयन ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है जो सरकार के सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक है। इस योजना के तहत् सरकार की गरीबों तक सीधे पहुंच रहेगी और विकास के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा। इस अधिनियम के तहत् प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिनका गारंटीशुदा अकुशल मजदूरी/रोजगार वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाएगा।
यह अधिनियम 2 फरवरी, 2006 को लागू किया गया। पहले चरण में वर्ष 2006-07 में देश के 27 राज्यों के 200 जिलों में इस योजना का कार्यान्वयन किया गया। इसमें 200 चयनित जिलों में 150 जिले ऐसे थे जहाँ काम के बदले अनाज कार्यक्रम पहले से चल रहा था। काम के बदले अनाज योजना व संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का विलय अब इस नई योजना में कर दिया गया है। अप्रैल 2008 से इस योजना को संपूर्ण देश में लागू कर दिया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला कानून है। इसमें रोजगार गारंटी किसी अनुमानित स्तर पर नहीं है। इस अधिनियम का लक्ष्य मजदूरी रोजगार को बढ़ाना है। इसका सीधा लक्ष्य है कि प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन द्वारा सही उपयोग और गरीबी के कारण-सूखा, जंगल काटना एवं मिट्टी के कटाव को सही तरीके से विकास में लगाना है।
ज्ञातव्य है कि नरेगा का नामकरण महात्मा गांधी के नाम पर करने की घोषणा 2 अक्टूबर, 2009 को गांधी जयंती के अवसर पर की थी।
परिणामस्वरूप वर्ष 2005 में बने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम औपचारिक रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) करने का प्रावधान किया गया।
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान हैं-
  • NREGA अधिनियमरोजगार की कानूनी (2008-09)गारंटी प्रदान करता है।
  • प्रत्येक विकास खण्ड पर इस कार्यक्रम की गतिविधियों का चयन पंचायत समितियों द्वारा करने का प्रावधान है।
  • पंचायत समितियों द्वारा लोगों को, कार्यक्रम की पारदर्शिता, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा सामाजिक सहभागिता का पूर्ण आश्वासन दिया जाएगा।
  • कष्ट निवारण समितियां हर जगह उपलब्ध होंगी।
  • 33 प्रतिशत लाभ महिलाओं को होगा तथा उन्हें पुरुषों के बराबर पारिश्रमिक की व्यवस्था।
  • रोजगार का इच्छुक कोई भी व्यक्ति, ग्राम पंचायत समिति में पंजीकरण करा सकता है। पंजीकृत होने वाले व्यक्तियों को ग्राम पंचायत द्वारा जॉब गारंटी कार्ड जारी किया जाएगा। इस कार्ड के अंतर्गत वैधानिक मान्यता है कि 15 दिनों के अंदर व्यक्ति को को रोजगार मिले।
  • पंजीकरण कार्यालय वर्षभर खुला रहेगा।
  • व्यक्ति को रोजगार उसके घर से 5 किमी. के दायरे में मिलेगा तथा साथ में मजदूरी भत्ता भी उपलब्ध कराया जायेगा।

राष्ट्रीय पुनःस्थापना एवं पुनर्वास नीति National Rehabilitation and Resettlement Policy

राष्ट्रीय पुनःस्थापना एवं पुनर्वास नीति 2007 सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण से उपजी अधिकतर चिंताओं को व्यक्त करती है।
एनपीआरआर-2007 के अंतर्गत, डेवलपर उसके प्रोजेक्ट के लिए जरूरी भूमि का कम से कम 70 प्रतिशत अधिग्रहीत कर सकेगा। इसके लिए, उसे बाजार कीमत चुकानी होगी। नई नीति के अंतर्गत, सरकार निजी डेवलपर के नाम पर अधिकतम 30 प्रतिशत भूमि अधिगृहीत कर सकेगी।
अब, सरकार को बाजार कीमत पर भूमि अधिग्रहीत करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त सरकार भूमिपति को अतिरिक्त मुआवजा अदा करेगी।
एक बार मुआवजे के अतिरिक्त प्रभावित क्षेत्र के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी देनी होगी। न केवल भूस्वामी को अपितु उन्हें भी जो अपनी आजीविका के लिए भूमि पर आश्रित हैं, जैसे भूमिहीन श्रमिक, को रोजगार प्रदान करना होगा।

महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति National Policy for the Empowerment of Women

सरकार द्वारा 2001 में लागू की गई महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति का उद्देश्य महिलाओं की प्रगति, विकास और सशक्तिकरण सुनिश्चित करना और महिलाओं के साथ हर तरह का भेदभाव समाप्त कर यह सुनिश्चित करना है कि वे जीवन के हर क्षेत्र और गतिविधि में खुलकर भागीदारी करें। इस नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की गई। लैंगिक समानता के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सरकार ने महिलाओं के समग्र सशक्तिकरण की दिशा में कई कदम उठाए हैं। योजना प्रक्रिया एक विशुद्ध कल्याण उपाय से आगे बढ़कर उन्हें विकास योजना के केंद्र में लाने के प्रयास तक आ पहुंची है। महिलाओं का भविष्य एक सशक्त, आत्मनिर्भर और स्वस्य सरक्षित माहौल में सांस लेने वाले समाज का है।

राष्ट्रीय खेल नीति National Sports Policy

राष्ट्रीय खेल नीति, 2001
खेलों को बढ़ावा देने तथा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने वर्ष 2001 में नई राष्ट्रीय खेल नीति बनाई। इसकी मुख्य बातें हैं-
  • खेलों का आधार व्यापक करना तथा उपलब्धियों में श्रेष्ठता लाना,
  • संरचनात्मक ढांचे का विकास तथा उच्चीकरण,
  • राष्ट्रीय खेल फेडरेशनों और दूसरी उपयुक्त संस्थाओं को सहायता प्रदान करना,
  • खेल को वैज्ञानिक तथा प्रशिक्षण संबंधी मजबूती प्रदान करना,
  • खिलाड़ियों को प्रोत्साहन,
  • महिलाओं, पिछड़ी जनजातियों तथा ग्रामीण युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा,
  • खेलों के उत्थान में संगठित क्षेत्रों की भागीदारी को बढ़ावा,
  • जनता में खेलों के प्रति रुझान बढ़ाना ।

राष्ट्रीय युवा नीति National Youth Policy

राष्ट्रीय युवा नीति (एनवाईपी) 2012 मसौदा इस प्रकार से अनूठा है कि यह इस तथ्य की पहचान करता है कि युवा एक सवाँग समूह नहीं है तथा इसके अनेकों विशेषक हैं जो रहन-सहन, पर्यावरण, इनके परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति तथा इनकी स्वयं की जीवन पद्धति पर आधारित है। साथ ही ड्राफ्ट पॉलिसी में वर्तमान 13-35 वर्ष आयु समूह की लक्ष्य आयु समूह को 16-30 वर्ष करना प्रस्तावित है। मसौदा नीति न सिर्फ उद्देश्यों को परिभाषित करती है बल्कि वांछित नीति मध्यवर्तन के विवरण तथा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जिम्मेदार सहभागी की पहचान करने को भी विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करती है। पहली बार युवा विकास इन्डेक्स (वाईडीपी) को भी नीति के भाग के रूप में समाविष्ट किया गया है जो कि मूल्यांकनकर्ताओं तथा नीति बनाने वालों के लिए एक आधारभूतरेखा तथा आशु परिकलक का कार्य करेगा। वैश्वीकरण दुत तकनीकी उत्कर्ष तथा वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत के उद्भव के कारण देश में बदलते परिदृश्य में वर्तमान राष्ट्रीय युवानीति, 2003 की समीक्षा की जरूरत पड़ी। एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में युवा नीति मसौदा, विशेष लक्ष्यों के रूप में सामाजिक-आर्थिक, लिंग तथा भौगोलिक पैमाने पर आधारित विविध खण्डों को चिन्हित करने के अलावा पहली बार प्रधानमंत्री की कौशल विकास मिशन की रेखा में विभिन्न युवा खण्डों को लक्षित रोजगार कौशल उपलब्ध कराने के लिए दिशा-निर्देशक सिद्धांत के रूप में सहारा दिया गया।
मसौदा एनवाईपी, 2012 के प्रमुख बिंदु
  • राष्ट्रीय युवा नीति मसौदा 2012 यह पहचान करता है कि युवा एक सर्वांग समूह नहीं है तथा इनके रहन-सहन,वातावरण जिसमें वे रहते हैं, इनके परिवारों की सामाजिक आर्थिक स्थिति तथा इनकी स्वयं की जीवन पद्धति पर आधारित काफी कारक मौजूद हैं।
  • निम्न लक्षित समूह चिन्हित किए गए हैं- (1) युवा छात्र (2) प्रवासी युवा (3) ग्रामीण युवा (4) जनजातीय युवा (5) यूथ एट रिस्क (6) हिंसक संघर्षों में युवा (7) स्कूल से बाहर/द्राप आउट युवा (8) सामाजिक/नैतिक कलंक के साथ समूह (9) संस्थागत देखभाल में युवा।
  • राष्ट्रीय युवा नीति मसौदा 2012 लक्षित आयु समूहको वर्तमान 13-35 वर्ष के आयु समूह से हटाकर 16-30 वर्ष आयु समूह तक लाना प्रस्तावित करता है। यह परिवर्तन करने का प्रस्ताव करने का उद्देश्य युवा की परिभाषा को वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिभाषा के तारतम्य में लाना है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार युवा की परिभाषा 15-24 वर्ष तक राष्ट्रमंडल के अनुसार 15-29 वर्ष है।
  • इस नीति के प्रमुख बिंदु में उल्लिखित नीति हस्तक्षेप पर आधारित एक अनुवर्ती कार्य योजना के जरिए लक्षित समूहों तथा प्राथमिकता समूहों से सरोकार को सम्बोधित किया जाएगा।
  • राष्ट्रीय युवा नीति 2012 का मसौदा 16-30 वर्षों के विस्तृत आयु वर्ग को तीन समूहों में विभाजित करने की योजना है-पहला उपसमूह 16-20 वर्ष आयु वर्ग का होगा जो उन युवाओं को आच्छादित करेगा जिन्हें शिक्षा की सुविधा वांछित है दूसरा उपसमूह 20-25 वर्ष आयु वर्ग का होगा जिसमें रोजगार कौशल की पहुंच वांछित है। तीसरा उपसमूह 25-30 वर्ष आयु वर्ग का होगा जिसमें स्वरोजगार तथा उद्यम कौशल की पहुंच वांछित है।
  • राष्ट्रीय युवा नीति 2012 मसौदे का उद्देश्य कौशल विकास के जरिए युवा को सशक्त करना है जिससे वह अन्य मंत्रालयों/विभागों के साथ अभिसरण के जरिए उद्यमिता के अवसर उपलब्ध करा सके एवं रोजगार की वृद्धि कर सके।
  • मुख्य बिंदु में शामिल है- राष्ट्रीय मूल्यों का संवर्द्धन,सामाजिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता, रोजगार कौशल के जरिए युवा सशक्तीकरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल तथा मनोरंजन, लिंग न्याय, सामुदायिक सेवाओं, पयावरण तथा स्थानीय सरकार में भागीदारी।
  • मसौदा राष्ट्रीय युवा नीति 2012 में पांच प्रक्षेत्र के अंतर्गत निगरानी योग्य सूचक है। तद्नुसार युवा विकास इन्डेक्स में शामिल है- युवा स्वास्थ्य इन्डेक्स, युवा शिक्षा इन्डेक्स, युवा कार्य इन्डेक्स, युवा सुविधा इन्डेक्स, युवा भागीदारी इन्डेक्स।
  • मसौदा राष्ट्रीय युवा नीति 2012 केंद्र तथा राज्यस्तरों पर एक मजबूत समन्वय तंत्र की स्थापना की वकालत करती है।
  • राष्ट्रीय युवा नीति मसौदा 2012 यह प्रस्तावित करती है कि युवा नीति की प्रत्येक राष्ट्रीय जनगणना के बाद समीक्षा की जाए।

राष्ट्रीय औषध नीति National Drug Policy

सरकार ने अपनी नई औषधि नीति, फरवरी 2002 में घोषित की। इस नई औषधि नीति के अंतर्गत पूर्व में मूल्य नियंत्रित 74 मूल या आधारीय औषधियों (बल्क इग्स) की संख्या घटा कर 38 कर दी गई है।
ऐसा माना जाता है कि सरकार ने मूल औषधियों को मूल्य-नियंत्रित करने, न करने के तीन मानदंड निर्धारित कर रखे हैं। पहला तो यह कि, संबंधित औषधि का वार्षिक व्यापार 25 करोड़ रुपये से अधिक (31 मार्च, 2001 की स्थिति के अनुसार) होना चाहिए तथा इसके संरूपण का बाजार-हिस्सा 50 प्रतिशत या इससे अधिक होना चाहिए तभी कोई औषधि मूल्य-नियंत्रण के दायरे में शामिल की जा सकती है, लेकिन यदि उस औषधि का बाजार-हिस्सा 50 प्रतिशत से कम है, तो उसे इस सूची से बाहर रखा जाएगा। दूसरे यह कि, यदि किसी मूल औषधि का वार्षिक व्यापार 10 से 25 करोड़ रुपये के बीच है, लेकिन उसका बाजार-हिस्सा 90 प्रतिशत या उससे अधिक है, तो उसे इस सूची में शामिल कर लिया जाएगा, तथा; तीसरे, अगर किसी मूल औषधि का वार्षिक व्यापार 10 करोड़ से नीचे है, तो उसे मूल्य-नियंत्रण की सूची से बाहर रखा जाएगा।
नई औषधि नीति के अंतर्गत यदि किसी औषधि के मूल्य में स्फीति दर से 5 प्रतिशत अधिक वृद्धि होती है तो सरकार उस औषधि कपनी से जवाब-तलब कर सकती है। नीति के अनुसार विटामिनों, एस्प्रिन तथा सिप्रोफ्लोक्सासिन को मूल्य-नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया है। जबकि मैक्सफोर्मिन, नोरफ्लोक्सिन, सालबटामोल सल्फेट, इब्यूप्रोफेन, सिनारबिन, पेंटाज़ोसिन, बीसाकोडिल क्लोरोफेनार्मिन तथा स्ट्रेप्टोमाइसिन उन नई औषधियों में शामिल हैं, जिन पर मूल्य-नियंत्रण लागू किया गया है। नियंत्रित-सूची में बनी रहने वाली मूल औषधियों में तपेदिक रोधी रिफापिसिन, बेटामेथाज़ोन तथा एमिनासिन सल्फेट के नाम भी हैं।
नई औषधि नीति सरकार द्वारा गठित दो समितियों की रिपोर्टों पर आधारित है। इनमें से एक थी-औषधिमूल्य नियंत्रण समीक्षा समिति (डी.पी.सी.आर.सी.),तथा; दूसरी, औषधीय शोध एवं विकास समिति (पी.आर.डी.सी.)। इसके अध्यक्ष थे सी.एस.आई.आर. (काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड रिसर्च) के महानिदेशक आर.ए.माशेलकर,जबकि मूल्य नियंत्रण समिति के अध्यक्ष रसायन तथा पेट्रोरसायन विभाग के सचिव थे। ये दोनों समितियां 1999 भंगठित की गई थीं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2002 National Health Policy -2002

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के विकेन्द्रीकरण की पहुंच बढ़ाकर देश के जन-साधारण के बीच बेहतर स्वास्थ्य के स्वीकार्य मानक प्राप्त करना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कमी वाले क्षेत्रों में नयी सुविधाएं जुटाने और वर्तमान संस्थानों में उपलब्ध सुविधाओं के स्तर में सुधार लाने हेतु एक योजना बनाई गई है। इस नीति के अंतर्गत सभी को समान स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने पर बल दिया जाएगा। केंद्र सरकार के योगदान द्वारा कुल सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश में वृद्धि पर विशेष जोर दिया जाएगा। इस कदम से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन को राज्य स्तर पर प्रभावी सेवाएं प्रदान करने की क्षमता में दृढ़ता आयेगी। स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए निजी क्षेत्र से और अधिक सहयोग लिया जाएगा, विशेषकर उस आय वर्ग के लिए जो इन सेवाओं के लिए धन व्यय कर सकते हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश की अभिवृद्धि में केंद्र सरकार की मुख्य भूमिका रहेगी। स्वास्थ्य क्षेत्र व्यय में सकल घरेलू उत्पाद का 5.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत करने की योजना बनाई गई है, जिसमें वर्ष 2010 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश द्वारा सकल घरेलू उत्पाद का 2 प्रतिशत (मौजूदा 0.9 प्रतिशत) योगदान रहेगा। केंद्र व राज्य सरकार का योगदान वर्ष 2010 तक कुल बजट का मौजूदा 15 प्रतिशत और 5.5 प्रतिशत से बढ़कर क्रमशः 25 प्रतिशत और 8 प्रतिशत होने की आशा व्यक्त की गई है।
राष्ट्रीय नीति में मौजूदा प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को बढ़ाने और मजबूत करने के लिए एकरूप,न्याय संगत प्राथमिकता देने पर विशेष बल दिया गया है। इसका प्रस्ताव प्राथमिक स्वास्थ्य क्षेत्र में कुल सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश का 55 प्रतिशत बजट में वृद्धि के माध्यम से किया गया केंद्र द्वारा वित्तीय योगदान के माध्यम से आवश्यक दवाओं के व्यवस्थापन की नई अवधारणा भी शामिल की गई है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को राज्य स्तर से विकेंद्रीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र और राज्य व जिला स्तरके स्वायत निकायों द्वारा क्रियान्वयन पर बल दिया गया है। इस संबंध में राष्ट्रीय नीति में देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र व राज्य सरकार की भूमिका को परिभाषित किया गया है। नीति में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे और प्राथमिक स्तर पर निर्दिष्ट सभी स्वास्थ्य कार्यक्रमों के अधिक-से-अधिक उपयोग और धीरे-धीरे उन्हें एकल कार्यक्षेत्र प्रशासन में एकाकार करने पर बल दिया गया है।
इसके साथ ही नीति में विशेष आवश्यकता वाले क्षेत्रों और अनेक मुद्दों को जोड़ा गया है। इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र में भागीदार तमाम समूहों की अपेक्षित भूमिका भी शामिल है, जिसमें-सरकार (केंद्र व राज्य दोनों), निजी क्षेत्र, स्वैचिठक संगठन और अन्य नागरिक सोसायटी के सदस्य, बीमारी की देख-रेख, स्वास्थ्य अधिकारी, उनके सिद्धांत और शिक्षा, नसिंग स्वास्थ्य, राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा की आवश्यकता, सूचना,शिक्षा और संचार की भूमिका, महिला स्वास्थ्य, स्वास्थ्य क्षेत्र पर वैश्वीकरण का प्रभाव, आदि सम्मिलित हैं।

राष्ट्रीय जल नीति National Water Policy

सरकार द्वारा 7 जून, 2012 को राष्ट्रीय जलनीति (2012)का संशोधित प्रारूप जारी किया गया। जल नीति की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
  • जल प्राकृतिक संसाधन है और जीवन, जीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार है।
  • जल संसाधनों के विषय में सार्वजनिक नीतियों का संचालन, कतिपय बुनियादी नियमों द्वारा करने की आवश्यकता है ताकि जल संसाधनों की आयोजना, विकास और प्रबंधन के दृष्टिकोणों में कुछ साझापन हो।
  • जल के संबंध में समुचित नीतियां,कानून और विनियमन बनाने का अधिकार राज्य का है तथापि जल सम्बन्धी सामान्य सिद्धांतों का व्यापक राष्ट्रीय जल संबंधी ढांचागत कानून तैयार करने की आवश्यकता है।
  • जल घरेलू उपयोग, कृषि, जल विद्युत, ताप विद्युत, नौवहन, मनोरंजन इत्यादि के लिए आवश्यक है। इन विभिन्न प्रकार के उपयोग के लिए जल का इष्टतम उपयोग किया जाना चाहिए तथा जल को एक दुर्लभ संसाधन मानने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए।
  • जल संसाधन संरचनाओं अर्थात् बांध,बाढ़ सुरक्षा तटबंध, ज्वार सुरक्षा तटबंध आदि की आयोजना और प्रबंधन में संभावित जलवायु परिवर्तनों से निपटने वाली कार्यनीतियां शामिल होनी चाहिए।
  • देश के विभिन्न बेसिनों तथा राज्यों के विभिन्न हिस्सों में जल संसाधन की उपलब्धता तथा इनके उपयोग का वैज्ञानिक पद्धति से आकलन और आवधिक रूप से अर्थात प्रत्येक पांच वर्ष में, समीक्षा किये जाने की आवश्यकता है।
  • विभिन्न प्रयोजनों के लिए जल उपयोग हेतु बेंचमार्क विकसित करने की एक प्रणाली अर्थात जल के कुशल उपयोग को प्रोत्साहित करने एवंबढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रयोजना के लिए जल उपयोग हेतु मानदंड निर्धारित करने की प्रणाली अर्थात् जल खपत-स्तर और जल लेखा-जोखा विकसित की जानी चाहिए।
  • नदी क्षेत्रों, जल निकायों एवं अवसंरचना का संरक्षण सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से एक नियोजित पद्धति से शुरू किया जाना चाहिए।
  • जल संसाधन परियोजनाओं की आयोजना विभिन्न स्थितियों के लिए निर्धारित दक्षता मानदंडों के अनुसार की जानी चाहिए।
  • बाढ़ एवं सूखे जैसी जल संबंधी आपदाओं को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। साथ ही प्राकृतिक जल निकास प्रणाली के पुनस्थापन पर भी अत्यधिक जोर दिया जाना चाहिए।
  • शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति के निर्धारण के बीच अधिक असमानता को हटाने की आवश्यकता है।
  • पक्षकार राज्यों के बीच जल से संबंधित मुद्दों पर विचार विमर्श करने तथा मतैक्य बनाने, सहयोग और सुलह करने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच होना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय नदियों के जल के बंटवारे और प्रबंधन हेतु सर्वोपरि राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए तटवर्ती राज्यों के परामर्श से द्विपक्षीय आधार पत विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।
  • संपूर्ण देश सैनियमित रूप से जल विज्ञानीय आंकड़ों का संग्रहण, सूचीबद्ध करने और प्रक्रियान्वयन करने के लिए एक राष्ट्रीय जल सूचना केंद्र को स्थापित करना चाहिए तथा इनका प्रारंभिक प्रक्रियान्वयन करना चाहिए, और जीआईएस प्लेटफॉर्म पर खुले और पारदर्शी तरीके से रखरखाव किया जाना चाहिए।
  • जल क्षेत्र के मुद्दों का वैज्ञानिक पद्धति से समाधान करने के लिए निरंतर अनुसंधान और प्रौद्योगिकी की प्रगति को अवश्य बढ़ावा दिया जाए।
  • राष्ट्रीय जल बोर्ड को राष्ट्रीय जल नीति के कार्यान्वयन की नियमित निगरानी के लिए राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् द्वारा अनुमोदित किए अनुसार राष्ट्रीय जल नीति के आधार पर एक कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए।

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति National Population Policy

फरवरी 2000 में सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 की घोषणा की। यह नीति डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित एक विशेषज्ञ दल की रिपोर्ट पर आधारित है। सरकार ने सार्वजनिक बहस के बाद इसे अंतिम रूप दिया। प्रजनन और शिशु स्वास्थ्य की देखभाल के लिए समुचित सेवा प्रणाली की स्थापना तथा गर्भनिरोधकों एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचे की आवश्यकताएं पूरी करना इसके तात्कालिक उद्देश्य हैं। इसकी दरम्यानी अवधि का उद्देश्य वर्ष 2010 तक 2.1 की कुल जनन क्षमता दर प्राप्त करना है। अगर जनन क्षमता की वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो यह उद्देश्य 2026 तक ही प्राप्त हो सकेगा। दीर्घकालीन उद्देश्य 2045 तक जनसंख्या में स्थायित्व प्राप्त करना है। नीतिगत उद्देश्य हासिल करने के लिए निम्नांकित कदम उठाए जाएंगे-
  • चौदह वर्ष की आयु तक स्कूली शिक्षा निशुल्क और अनिवार्य बनाना।
  • स्कूलों में बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वाले लड़के-लड़कियों की संख्या 20 प्रतिशत से नीचे लाना
  • शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार जीवित बच्चों में 30 से कम करना।
  • जच्चा मृत्यु अनुपात प्रति एक लाख संतानों में एक सौ से कम करना।
  • टीकों से रोके जाने वाले रोगों से सभी बच्चों को प्रतिरक्षित करना।
  • लड़कियों के देर से विवाह को बढ़ावा देना। विवाह 18 वर्ष से पहले न हो, बेहतर होगा अगर यह 20 वर्ष की आयु के बाद हो।
  • अस्सी प्रतिशत प्रसव अस्पतालों, नर्सिग होमों आदि में और 100 प्रतिशत प्रशिक्षित लोगों से कराना।
  • सभी को सूचना, परामर्श तथा जनन क्षमता नियमन की सेवाएं और गर्भनिरोध के विभिन्न विकल्प उपलब्ध कराना।
  • जन्म-मरण, विवाह और गर्भ का शत-प्रतिशत पंजीयन करना।
  • एड्स का प्रसार रोकना तथा प्रजनन अंग रोगों के प्रबंध तथा राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के बीच अधिक समन्वय स्थापित करना।
  • संक्रामक रोगों को रोकना और उन पर काबू पाना। प्रजनन और शिशु स्वास्थ्य सुविधाओं को घर-घर तक पहुंचाने के लिए भारतीय चिकित्सा प्रणालियों की समेकित करना।

राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति National Policy on Biofuels

जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तैयार की गई। इसे दिसम्बर, 2009 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूरी दी गई। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
  • 2017 से जैव ईंधन के लिए 20 प्रतिशत मिश्रण के लिए जैव ईथेनॉल और जैव डीजल प्रस्तावित किया है।
  • व्यर्थ/डिग्रेडिड/सीमान्त भूमि में होने वाले गैर खाद्य तेल बीजों से जैव डीजल का उत्पादन किया जाएगा।
  • जैव डीजल चारे के स्वदेशी उत्पादन पर केन्द्रित होगा और तेल, पाम जैसे वसायुक्त अम्ल रहित (एफएफए) के आयात की अनुमति नहीं होगी।
  • उपजाऊ भूमि में पौधारोपण को प्रोत्साहन देने की बजाय समुदाय/सरकारी/जंगली बंजर भूमि पर जैव ईंधन पौधारोपण को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • इसके उत्पादकों की उचित मूल्य प्रदान करने के लिए जैव ईंधन तेल बीजों के मूल्य को समय-समय पर बदलने के प्रावधान के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किया जाएगा। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति में निहित एमएसपी प्रणाली की विस्तृत जानकारी पर ध्यान दिया जाएगा और जैव-ईंधन संचालन समिति द्वारा विचार किया जाएगा।
  • तेल विपणन कपनियों द्वारा जैव-ईथेनॉल की खरीद के लिए न्यूनतम खरीद मूल्य (एमपीपी) उत्पादन की वास्तविक लागत और जैव-ईथेनॉल के आयातित मूल्य पर आधारित होगा। बायो डीजल के मामले में एमपीपी वर्तमान रिटेल डीजल मूल्य से संबंधित होगा।
  • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति में परिकल्पना की गई है कि जैव ईंधन यानी बायोडीजल और जैव ईथेनॉल की घोषित उत्पादों के तहत रखा जाए ताकि जैव ईंधन  के अप्रतिबंधित परिवहन को राज्य के भीतर और बाहर सुनिश्चित किया जा सके।
  • नीति में बताया गया है कि कोई कर और कोई शुल्क जैव डीजल पर नहीं लगाया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाएगी।
  • जैव ईंधन संचालन समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव द्वारा की जाएगी।
  • जैव ईंधन के क्षेत्र में शोध के लिए जैव प्रौद्योगिकी विभाग, कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय और नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के नेतृत्व में संचालन समिति के अधीन एक उप-समिति का गठन किया जाएगा।
  • शोध, विकास और प्रदर्शन पर विशेष जोर दिया जाएगा जिसके केंद्र में रोपण, प्रसंस्करण और उत्पादन प्रौद्योगिकी समेत दूसरी पीढ़ी के सेलुलोज से बने जैव-ईंधन शामिल होगे।