Saturday 28 May 2016

राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) National Horticulture Mission - NHM

राष्ट्रीय बागवानी मिशन कार्यक्रम केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है, जिसे मई 2005 में प्रारंभ किया गया था। इस कार्यक्रम के अंतर्गतबागवानी उत्पादों के उत्पादन, फसल परवर्ती प्रबंधन और विपणन मामलों को शामिल किया जाता है। इस मिशन के तहत् निम्नलिखित मुद्दों पर बल दिया गया है-
  • कलम बैंक स्थापित करने सहित पर्याप्त गुणवत्ता वाले पौधों का उत्पादन और आपूर्ति की क्षमता बढ़ाना।
  • अच्छी खेती के लिए फसल की पैदावार बढ़ाना।
  • बागवानी फसलों का उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना।
  • मूलभूत ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए मिट्टी और पत्ते के निरीक्षण के लिए प्रयोगशालाएं, कीटनाशकों का सर्वेक्षण, ग्रीन हाउस, पाली हाउस, सिंचाई, पौधशालाएं आदि जैसी सुविधाओं को बढ़ाना।
  • फसल के बाद मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाना।
  • निर्यात के लिए उच्च किस्म की बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाना।
  • विपणन और निर्यात के लिए मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाना।
  • उच्च किस्म के प्रसंस्करण उत्पादों का उत्पादन बढ़ाना।
  • योग्यता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी के जरिए सुदृढ़ आधार तैयार करना।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत प्रतियोगी बागवानी फसलों पर अधिक जोर देने के साथ प्रौद्योगिकी के प्रति भी दृष्टिकोण बदलने पर बल दिया गया है।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) Rashtriya Krishi Vikas Yojana - RKVY

राष्ट्रीय विकास परिषद के प्रयासों के परिणामस्वरूप 16 अगस्त, 2007 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी। इस योजना हेतु सरकार द्वारा पांच वर्ष के लिएर 25,000 करोड़ आवंटित किए गए हैं।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का उद्देश्य कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों का सम्पूर्ण विकास सुनिश्चित करके, ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान कृषि में 4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना राज्य की आयोजना होगी और कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों पर उपगत आधारित व्यय की प्रतिशतता के अतिरिक्त, इस योजना के तहत सहायता के लिए पात्रता कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए बजटों में रखी गयी राशि पर निर्भर होगी। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहतूकेंद्र सरकार द्वारा राज्यों को 100 प्रतिशत अनुदान के रूप में कोष प्रदान किया जायेगा। योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
  1. राज्यों को प्रोत्साहित करना ताकि कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि की जा सके।
  2. कृषि और संबद्ध क्षेत्र की योजनाओं के आयोजन और कार्यान्वयन की प्रक्रिया में राज्यों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करना।
  3. जिलों और राज्यों के लिए कृषि योजनाओं की तैयारी की उपलब्धता पर सुनिश्चित करना।
  4. यह सुनिश्चित करना कि स्थानीय जरूरतों/फसलों/प्राथमिकताओं को राज्यों की कृषि योजनाओं में बेहतर ढंग से प्रतिबिम्वित किया जाए।
  5. मध्यस्थताओं को संकेन्द्रित करके महत्वपूर्ण फसलों में पैदावार के अंतर को कम करने का लक्ष्य प्राप्त करना।
  6. कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों में किसानों को अधिकतम रिटर्न दिलाना।

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) National Social Assistance Programme - NSAP

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम जो 15 अगस्त, 1995 से अस्तित्व में आया, संविधान के अनुच्छेद 41 एवं 42 में वर्णित नीति-निदेशक सिद्धांतों को पूरा करने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके अंतर्गत  निर्धन परिवारों को, वृद्धावस्था, प्रमुख जीविको पार्जक की मृत्यु और मातृत्व के मामले में सामाजिक सहायता के लिए एक राष्ट्रीय नीति शुरू की गई है। इस कार्यक्रम के तीन घटक हैं-
  • राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना
  • राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना
  • राष्ट्रीय मातृत्व लाभ योजना विभिन्न संबंधित निकायों से प्राप्त सुझावों और राज्य सरकारों की प्रतिक्रिया के आधार पर 1998 में इन योजनाओं में आशिक संशोधन किया गया।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम शत-प्रतिशत केंद्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऐसे लाभ के अतिरिक्त सामाजिक सहायता का न्यूनतम मानक सुनिश्चित करना है, जो राज्य पहले से दे रहे हैं अथवा भविष्य में प्रदान करेंगे। यह कार्यक्रम गरीबी उन्मूलन और बुनियादी आवश्यकताओं की व्यवस्था हेतु संचालित योजनाओं के साथ सामाजिक सहायता उपायों को जोड़ने के अवसर प्रदान करता है। विशेष रूप से वृद्धावस्यथा पेंशन को वृद्ध गरीबों के लिए चिकित्सा देखभाल और अन्य लाभों के साथ जोड़ा जा सकता है। ऐसेगरीब परिवारों, जिनका आजीविका कमाने वाला र्नही रहा हो, को परिवार लाभ योजना के अतिरिक्त स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के अंतर्गत भी सहायता दी जा सकती है। मातृत्व सहायता को जच्चा-बच्चा देखभाल कार्यक्रम से जोड़ा गया है।

सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) Sarva Shiksha Abhiyan - SSA

2001-02 में शुरू किया गया सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) वर्तमान में चल रहा एक व्यापक कार्यक्रम है और प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराने का मुख्य साधन है। सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
  1. 2005 तक सभी बच्चों का स्कूलों, शिक्षा गारंटी केंद्रों, वैकल्पिक स्कूल, ब्लॉक टू स्कूल कैंपों में दाखिला करना,
  2. प्राथमिक अवस्था में वर्ष 2007 तक और प्रारम्भिक शिक्षा के स्तर पर 2010 तक सभी लिंग और सामाजिक श्रेणी के अन्तर को समाप्त करना,
  3. वर्ष 2010 तक सार्वभौमिकं प्रतिघारण, औरः
  4. जीवन के लिए शिक्षा पर जोर देते हुए संतोषजनक गुणवत्ता की प्रारंभिक शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना।
शिक्षा के अधिकार के अधिनियम के प्रावधानों को सर्वशिक्षा अभियान के जरिए कार्यान्वित किया जाता है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की आवश्यकताओं के अनुरूप अभियान के तौर-तरीकों में आवश्यक संशोधन किए गए हैं।
राज्यों के भागीदारी में कार्यान्वित सर्वशिक्षा अभियान 6-14 वर्ष के आयु वर्ग में 209 मिलियन बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करता है। यह 9.72 लाख विद्यमान प्राइमरी और अपर प्राइमरी विद्यालयों तथा 36.95 लाख अपर अध्यापकों को कवर करता है।
यह कार्यक्रम पूरे देश में लागू किया जाएगा तथा इसमें बालिकाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों तथा दुष्कर परिस्थितियों में रह रहे छात्रों में अभी तक स्कूल नहीं हैं, वहां नए स्कूल खोलना तथा अतिरिक्त कक्षाओं हेतु नए कमरे, शौचालय, रखरखाव एवं स्कूल सुधार अनुदान के माध्यम से नए स्कूल खोलना और पुष्ट करना शामिल है।
योजनांतर्गत 6 से 11 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को वर्ष 2007 तक पांच वर्ष की तथा 11 से 14 वर्ष तक के बच्चों को 8 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से पूरा प्रयास किया जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि सभी की शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए यूनेस्को ने सन् 2015 तक की समय सीमा निर्धारित की है। सर्वशिक्षा अभियान के बेहतर एवं समग्र क्रियान्वयन हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सर्वशिक्षा अभियान मिशन भी स्थापित किया गया है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत बालिका छात्रों तथा कमजोरवगाँके बच्चों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इन छात्रों को ध्यान में रखकर विभिन्न कदम उठाए गए हैं, जैसे- मुफ्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराना,इत्यादि। डिजिटल डिवाइड को खत्म करने के लिए सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में कम्प्यूटर शिक्षा भी प्रदान की जाएगी।

समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) Integrated Child Development Services - ICDS

समन्वित बाल विकास सेवा 1975 में केंद्र-प्रायोजित योजना के तौर पर शुरू की गई। इसके उद्देश्य हैं-
  1. 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के पौष्टिक आहार तथा स्वास्थ्य स्तर में सुधार,
  2. बच्चों के समुचित मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और सामाजिक विकास की नींव डालना,
  3. बाल मृत्यु दर, कुपोषण और स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने वाले बच्चों की दर में कमी लाना,
  4. बाल विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न विभागों के बीच नीति तथा कार्यान्वित में कारगर तालमेल;
  5. स्वास्थ्य तथा पोषाहार शिक्षा की समुचित व्यवस्था कर के माताओं की, बच्चों के स्वास्थ्य व पोषाहार संबंधी आवश्यकताओं की देखरेख की क्षमता बढ़ाना।
इस योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रत्येक ग्रामीण और आदिवासी सामुदायिक विकास, ब्लॉक में एक परियोजना स्थापित की जाए। उसकी आबादी और गांवों की संख्या भले कुछ भी हो। शहरों में एक लाख की आबादी पर एक परियोजना चलायी जाएगी। 400-800 की आबादी पर एक आगनवाड़ी, 800-1600 की आबादी पर दो आंगनबाड़ी,1600-2400 की आबादी पर तीन और उनके उपरांतप्रत्येक 800 के गुणांकों की आबादी पर एक आंगनवाड़ी खोली जाएगी। ग्रामीण और शहर की 150-400 की आबादी के लिए एक लघु आंगनवाड़ी परियोजना शुरू की जाएगी। आदिवासी, नदी क्षेत्र, रेगिस्तानी, पहाड़ी, और अन्यदुर्गम क्षेत्रों में 300-800 की आबादी पर एक आंगनवाड़ी और 150-300 की आबादी पर लघु आंगनवाड़ी खोली जाएगी।

इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) Indira Awaas Yojana - IAY

गांवों में आवास की कमी को दूर करने के उद्देश्य से जवाहर रोजगार योजना (जेआरवाई) की उप-योजना के रूप में मई, 1985 में इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) शुरू की गई। 1 जनवरी, 1996 से यह एक स्वतंत्र योजना के रूप में लागू है और यह ग्रामीण आवास हेतु ध्वजपोत कार्यक्रम है। इस योजना का लक्ष्य अत्यंत गरीब अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, मुक्त बंधुआ मजदूरों और गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में आनेवाले ग्रामीण गरीबोंको आवासीय इकाइयों के निर्माण और मौजूदा अनुपयोगी कच्चे मकानों को सुधारने में मदद देना है, जिसके लिए उन्हें सहायता अनुदान दिया जाता है। वर्ष 1995-96 से इंदिरा आवास योजना का लाभ युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं या उनके निकट संबंधियों को भी दिया जाने लगा है।
इस योजना के अंतर्गत मकान का आवंटन परिवार की महिला सदस्य के नाम या संयुक्त रूप से पति-पत्नी के नाम किया जाता है। कम से कम 60 प्रतिशत धनराशि का उपयोग अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों के लोगों के लिए करना होता है। स्वच्छ शौचालय और धुआं-रहित चूल्हे भी लाभार्थियों को उपलब्ध कराए जाते हैं।
इंदिरा आवास योजना के मुख्य तथ्य-
  • इस योजना के अधीन दी जाने वाली राशि 1 अप्रैल, 2008 से मैदानी क्षेत्रों में प्रति गृह निर्माण सहायता को ₹ 25,000 से बढ़ाकर ₹ 35,000 और पहाड़ी/पर्वतीय क्षेत्रों में ₹ 97,500 से बढ़ाकर ₹ 38,500 कर दिया गया है।
  • कच्चे मकान को पक्का बनाने के लिए प्रति मकान ₹ 12,500 से बढ़ाकर ₹ 15,000 कर दिया गया है।
  • इस योजनान्तर्गत पुरुष सदस्य के नाम मकान तभी आवंटित होगा जब परिवार में महिला सदस्य न हो।
  • शौचालय, धुआंरहित चूल्हा,सही नाली इत्यादि व्यवस्था इंदिरा आवास योजनान्तर्गत निर्माणाधीन आवासों में होनी चाहिए।
  • इस योजना के तहत् किसी प्रकार का खास डिजाइन, तकनीक एवं सामग्री नहीं होती।
  • योजना के तहतू, वित्तीय संसाधन केंद्र और राज्य में 75:25 के अनुपात का आधार है।
  • वर्ष 2007-08 के दौरान 21.27 लाख मकानों का निर्माण/मरम्मत का लक्ष्य था जबकि सरकार ने 19.88 लाख मकानों के निर्माण/मरम्मत के लिए ₹ 5458.01 करोड़ व्यय किए।
  • वर्ष 2008-09 के लिए केंद्र ने ₹ 5,645.77 करोड़ जारी किए, इससे 21.27 लाख मकान इंदिरा आवास योजना के तहत बनाने का लक्ष्य आबंटन और इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत् कितने घर बनेंगे, तय करती है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) Mahatma Gandhi National Rural Employment Gurantee Act - MGNREGA

राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) का क्रियान्वयन ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है जो सरकार के सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक है। इस योजना के तहत् सरकार की गरीबों तक सीधे पहुंच रहेगी और विकास के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा। इस अधिनियम के तहत् प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिनका गारंटीशुदा अकुशल मजदूरी/रोजगार वित्तीय वर्ष में प्रदान किया जाएगा।
यह अधिनियम 2 फरवरी, 2006 को लागू किया गया। पहले चरण में वर्ष 2006-07 में देश के 27 राज्यों के 200 जिलों में इस योजना का कार्यान्वयन किया गया। इसमें 200 चयनित जिलों में 150 जिले ऐसे थे जहाँ काम के बदले अनाज कार्यक्रम पहले से चल रहा था। काम के बदले अनाज योजना व संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का विलय अब इस नई योजना में कर दिया गया है। अप्रैल 2008 से इस योजना को संपूर्ण देश में लागू कर दिया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला कानून है। इसमें रोजगार गारंटी किसी अनुमानित स्तर पर नहीं है। इस अधिनियम का लक्ष्य मजदूरी रोजगार को बढ़ाना है। इसका सीधा लक्ष्य है कि प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन द्वारा सही उपयोग और गरीबी के कारण-सूखा, जंगल काटना एवं मिट्टी के कटाव को सही तरीके से विकास में लगाना है।
ज्ञातव्य है कि नरेगा का नामकरण महात्मा गांधी के नाम पर करने की घोषणा 2 अक्टूबर, 2009 को गांधी जयंती के अवसर पर की थी।
परिणामस्वरूप वर्ष 2005 में बने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम औपचारिक रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) करने का प्रावधान किया गया।
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान हैं-
  • NREGA अधिनियमरोजगार की कानूनी (2008-09)गारंटी प्रदान करता है।
  • प्रत्येक विकास खण्ड पर इस कार्यक्रम की गतिविधियों का चयन पंचायत समितियों द्वारा करने का प्रावधान है।
  • पंचायत समितियों द्वारा लोगों को, कार्यक्रम की पारदर्शिता, सामाजिक उत्तरदायित्व तथा सामाजिक सहभागिता का पूर्ण आश्वासन दिया जाएगा।
  • कष्ट निवारण समितियां हर जगह उपलब्ध होंगी।
  • 33 प्रतिशत लाभ महिलाओं को होगा तथा उन्हें पुरुषों के बराबर पारिश्रमिक की व्यवस्था।
  • रोजगार का इच्छुक कोई भी व्यक्ति, ग्राम पंचायत समिति में पंजीकरण करा सकता है। पंजीकृत होने वाले व्यक्तियों को ग्राम पंचायत द्वारा जॉब गारंटी कार्ड जारी किया जाएगा। इस कार्ड के अंतर्गत वैधानिक मान्यता है कि 15 दिनों के अंदर व्यक्ति को को रोजगार मिले।
  • पंजीकरण कार्यालय वर्षभर खुला रहेगा।
  • व्यक्ति को रोजगार उसके घर से 5 किमी. के दायरे में मिलेगा तथा साथ में मजदूरी भत्ता भी उपलब्ध कराया जायेगा।